स्वतंत्र सिंह भुल्लर नई दिल्ली
नई दिल्ली। वर्धमान महावीर मेडिकल कॉलेज में शारीरिक चिकित्सा एवं पुनर्वास विभाग द्वारा कार्डियक रिहैबिलिटेशन सीएमई & वर्कशॉप का आयोजन वर्धमान महावीर मेडिकल कॉलेज एवं सफदरजंग हॉस्पिटल के व्याख्यान सभागार में किया गया। जिसमें विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डॉक्टर आर के वाधवा और ऑर्गेनाइजिंग सेक्रेटरी डॉक्टर सुमन बधाल प्रोफेसर शारीरिक चिकित्सा एवं पुनर्वास द्वारा कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमे चिकित्सा अधीक्षक प्रोफेसर डॉक्टर वंदना तलवार मुख्य अतिथि थी। इस अवसर पर 85 डॉक्टर्स ने ज्ञान प्राप्त किया। रोगी स्वास्थ्य शिक्षा पत्रिका का विमोचन भी किया गया, जिसे डॉक्टर सुमन , पूनम ढांडा स्वास्थ्य सामाजिक कल्याण अधिकारी एवम विजय कुमार स्वास्थ्य शिक्षक ने तैयार किया। इसका विमोचन चिकित्सा अधीक्ष डॉ वंदना तलवार ने किया। हृदय पुनर्वास1772 में डॉक्टर सर विलियम हेबर्डन द्वारा किया गया था। 300 साल के बाद भी हृदय पुनर्वास बहुत पीछे रह गया है। शारीरिक गतिविधि के लाभों के कुछ सबूतों के बावजूद, तीव्र कोरोनरी घटनाओं वाले रोगियों पर गतिशीलता प्रतिबंध लगाया गया था, जिससे अक्सर गंभीर डिकंडिशनिंग समस्याएं, कार्यात्मक क्षमता में गिरावट, लंबे समय तक अस्पताल में रहना और रुग्णता और मृत्यु दर में वृद्धि हुई।1950 के दशक की शुरुआत में, कोरोनरी की घटनाओं के 4 सप्ताह बाद 3 से 5 मिनट की बहुत छोटी दैनिक सैर की अनुमति दी गई थी। धीरे-धीरे, यह पहचाना गया कि जल्दी-जल्दी चलने-फिरने से बिस्तर पर आराम करने की वजह से होने वाली जटिलताओं से बचा जा सकता है और इससे जोखिम भी नहीं बढ़ता।हृदय पुनर्वास द्वारा हृदय रोगियों को ठीक होने में और उनकी कार्यात्मक और मानसिक स्थिति को अनुकूलित करने में मदद मिलती है।जिससे रोगी अपनी दिनचर्या व रोजमर्रा के काम जल्दी करने लगता है।कार्डियोवैस्कुलर रोगों का बोझ वैश्विक स्तर की तुलना में भारत मे ज्यादा पाया जा रहा हैं। जिसमें से भारत में इसकी दर 23% हैं जहां वैश्विक दर 14% हैं।विदेशो व भारत के निजी स्वास्थ्य केन्द्रों अथवा संस्थानों में पूर्ण रूप से हृदय पुनर्वास को अपनाया जा चुका है।