बहुप्रतिभा के धनी आलोक श्रीवास्तव ने विभिन्न क्षेत्रो में अपनी कड़ी मेहनत लगन एवं कार्यकुशलता से एक मजबूत पहचान बनायी है। पत्रकारिता ,काव्य जगत ,गीत संगीत ,आदि क्षेत्रो में इन्होंने अपने यादगार कार्य किये। जिसकी देश दुनिया में काफी प्रशंसा हुई। उपरोक्त क्षेत्रो के नामचीन हस्तियों में आप के मज़बूत हस्ताक्षर है। यह संयोग कम ही बनता है कि कई तरह की प्रतिभाएं एक व्यक्ति में समाहित हो इन्होंने अपने अविश्मरणीय उपलब्धियों के बदौलत एक मजबूत पहचान तो बनाई ही देश दुनिया में कई बड़े पुरस्कारो से भी नवाजे गए। हमेशा विवादों से दूर रहकर इन्होने अपने कर्तव्ये पथ पर एक कर्मयोगी की तरह चलते रहे । यह इनकी सख्शियत को और महान बना देता है। दिल्ली और दिल्ली की संवादाता निकिता ठगुन्ना जब देश के ताज़ा हालात आज की पत्रकारिता ,काव्य जगत के सुरते हाल एवं गीत संगीत का मानव जीवन पर प्रभाव आदि विषयो में इन्हे कुरेदा तो बड़ी ही बेबाकी एवं स्पष्टता से इन्होंने अपने विचार रखे। प्रस्तुत है इनके साथ हुई वार्तालाप के अंश
प्रश्न 1 आज की पत्रकारिता को आप स्वस्थ पत्रकारिता मानते है?
उत्तर: पहली बात मै डिबेट शो का समर्थन नहीं करता ।डिबेट के नाम पर सिर्फ शोर शराबा ही देखने को मिलता है। सभी पार्टियों के प्रवक्ता किसी विषय पर केवल शोर शराबा कर अपनी बात को सही ठहराना चाहते है। पिछले थोड़े दिनों पहले मैंने अपने सभी मित्रो के आग्रह पर फैज़ साहब के विवाद पर न्यूज़ 24 पर शिरकत की , मैंने पहले ही उनसे प्रॉमिस कर दिया कि मै डिबेट नहीं करूंगा लेकिन पत्रकार , कवि ,शायर के हैसियत से वस्तुस्थिति से अवगत करा दूंगा। विषय क्या है और इसे क्या समझा जा रहा है, न सिर्फ पढ़ी और समझी गलत गयी है बल्कि प्रस्तुत करने का तरीका भी गलत था। हमारे यहाँ चीज़े काफी होज पोज़ हो गयी है। मिसाल के तौर पर अगर न्यूज़ चैनल का कोई कार्यक्रम सामाजिक दायरे में नहीं आता तो दर्शक उसका बहिष्कार करते है। वह स्वतः बंद हो जायेगा।
प्र2 देश में आज जो कुछ भी हो रहा है क्या यह राष्ट्र्वाद की राजनीति हैं ?
उत्तर:अमूमन मैं पोलिटिकल जवाब देता नहीं हूं और मै इनसे बचता भी हूँ क्यूकि इसमें सबका अपना अपना पक्ष होता है।मुझे वह भारत पसंद है जिसमे सब मिल जुलकर रहते है।जिस भारत की परिकल्पना गाँधी जी ने की थी एवं अन्य क्रांतिकारियों ने या जो वसुधैव कुटुंबकम की संस्कृति है। हम उस भारत को मानने वाले लोग है। मसलन आपकी विचारधारा मझे प्रभावित नहीं कर रही है तो मै खुद इसमें चर्चा ही क्यों करू? यह विचारधारा का खेल है जिसमे लोग अपनी जैसी विचारधारा औरो में खोजने लगते है इसी कारण से जब विचारधारा मेल नहीं खाती तो प्रदशन और आंदोलन में तब्दील कर अपनी बात मनवाने की फ़िराक में राजनीती होने लगती है।
प्र 3 छात्र आंदोलन से आप कितना सहमत है?
उत्तर: छात्र आंदोलन अपने आप में सही था और सही है। छात्र आंदोलन का उद्देश्य कभी भी गलत नहीं होता बल्कि राजनीतिकि पार्टिया अपने फयादा के लिए इसे गलत बनती है। यह सरासर निंदनीय हैं ।मीडिया ने भी यह दिखाया जामिया में जो प्रोटेस्ट हो रहा था वो अपनी जगह में सही था पर बाहरी लोग कहा से आये व वाकई में वह जामिया के ही छात्र थे या असामाजिक तत्व?यह निष्पक्ष जाँच से ही पता चलेगा। सरकार का यह धर्म है की वह किसी भी बिल को इस तरह पेश करने के पहले जनता के बीच उसकी विस्तृत जानकारी प्रस्तुत करें।
प्र 4आप बहुप्रतिभाशाली व्यक्ति है आपने विभिन्न क्षेत्रो में अपनी प्रतिभा दिखाई यह सब मानव जीवन को कितना प्रभावित करता है ?
उत्तर : यह मानव मन को बहुत प्रभावित करती है। कविता जो है वो हमेशा आंदोलनों और मानवीय संवेदनाओ के लिए ध्वजवाहक रही है। किसी भी बात को कविताओं के जरिये कहना बहुत प्रभावी होता है और अधिक लोगो तक पहुँचती भी है। आपने देखा होगा मेरे कविताओं में भारतीय संस्कृति एवं पौराणिक धरोहर की झलक मिलती है।
प्र 5 आपकी एक प्रसिद्ध कविता है आओ सोचे जरा ,आओ देखे जरा हमने क्या क्या किया ......................थोड़ा संक्षिप्त में बताये ?
उत्तर: यह कविता आत्म निरक्षण की कविता है देखिये मेरी विचारधारा मानवतावाद की है सबसे पहले देश और फिर आप है! धर्म की बात है तो किसी को भी अपना धर्म मानना व् उसके अनुसार कार्य करने में वह स्वतंत्र है लेकिन जो दूसरे धर्म को लेकर विवाद करना उसे रोकने की साज़िश करना यह गलत बात है। आपको व्यवस्था ,प्रशासन ,कानून से चिढ़ है यह एक अलग विषय है लेकिन खुद की सम्पति में आग लगाना यह कहा से सही है। मसलन के तौर पर हमारा दिल बहुत कुछ कहता है लेकिन हम दिल की सुनते नहीं है कोई आन्दोलन करने से पूर्व उसका आक्रामक रणनीति बनाने से पहले भी नहीं सोचते!ऐसी स्थिति में यह कविता है आओ सोचे जरा.............
प्र 6 आपको रिश्तो का कवि क्यों कहा जाता है?
उत्तर रिश्तो का कवि मुझे इसलिए कहा जाता है क्योंकि जो भी मेरी कविताओं में भावनाएं होती हैं वह मेरे ही परिवार के बैकग्राउंड से जो मैंने देखी है, समझी है वही मैं अपनी कविताओं में पिरोता हूं । जहा भाईचारा की बात करें तो इसमें एक कविता है वो दौर दिखा जिसमे इंसान की खुशबू हो, इंसान की सांसो में उसके इमां की खुशबू हो.......................इसका अभिप्राय यही है की तुम इतने शक्तिशाली हो की इंसानियत तुमसे जिन्दा है और तुम्हरा इमां भी इंसानियत की सबसे बड़ी पहचान है। यह कविता मानव मूल्यों पर आधारित है व् मानवता के लिए एक बहुत बड़ी सीख है।
प्र 7 पूरानी और नयी फिल्मो यानी आज के दौर की फिल्मो में आप क्या अंतर् देख रहे है ?क्या आज की फिल्मे हमारी संस्कृति को कुप्रभावित कर रही है?
उत्तर आज की फिल्मे स्मार्ट हो गयी है हमारी फिल्मों में एक मैसेज मिलेगा ,एक दिशा देखने को मिलेगी वहीं बॉलीवुड जगत में अलग दुनिया के साथ फिल्में प्रस्तुत होती है। जब हमारी भारतीय फिल्मे शुरू से जब तकनीकी रूप से स्ट्रांग नहीं थी तब भी वो सांस्कृति रूप में ही बनकर आती थी जैसे मदर इंडिया और मुगले आज़म!उस दौर पर तकनीकी रूप से भले ही हम पीछे थे लेकिन इन फिल्मों के सन्देश काफी सत्य थे। उनके जो कथानक व् संवाद थे वह बहुत अच्छे होते है। इसी तरह नयी फिल्मों में इसकी कमी आयी है क्यूकि फिल्मों से ही लोग ज़बान सीखते है व् प्रभावित होते है तो इसका ध्यान अवश्य रखा जाना चाहिए।
प्र 8 किसी भी क्षेत्र में देश की सेवा करने वाले एवं उनके परिवार वालो को सिर्फ पुरस्कार या ट्रोफी भेजना ही काफी है या सरकार को इसमें और ध्यान देने की आवश्यकता हैं ?
उत्तर: पॉलिसीस बहुत सारी है लेकिन जो देश की रक्षा करता है उसपर सरकार का विशेष रूप से यह एक राष्टीय धर्म हैं। हमारे वीर सिपाही सरहद पर रहकर देश की रक्षा कर रहे है । इसमें सरकार को नज़रअंदाजी बिल्कुल नहीं करनी चाहिए साथ ही उनके परिवार वालो को सहारा और आत्मविश्वास समय- समय पर देना यह पहला कर्तव्य होना चाहिए।
प्र 9 किताब प्रेमी कैसे बना जा सकता है?
उत्तर :अब माध्यम इतने हो गए है कि लोगो की रूचि इंटरनेट की दुनिया में आ गयी है। मै मानता हूँ माध्यम कोई भी हो ज्ञान अर्जित हो रहा है तो वह किसी भी माध्यम के आगे कुछ नहीं। बात करे स्पष्टता की तो जो किताब का मिज़ाज़ है अलग ही प्रस्तुति में रहता है।
प्र 10 अगली पीढ़ी के लिए आपका क्या सन्देश देंगे ?
उत्तर : कोई भी चीज़ लिख रहे हो एक तो लगन और दूसरा धैर्य के साथ कुछ भी लिखे। धैर्य के अभाव में, जो आज की पीढ़ी है कुछ नया भी करना चाहती है उसमे पहले फल की चिंता सताने का प्रश्न ही उन्हें उस मार्ग तक पूछने नहीं देता है।धैर्य का सबसे बड़ा रोले यहीं काम आता है। आज की पीढ़ी के जो लेखक है में उनसे कहना चाहूंगा साहित्य कोई शॉर्टकट नहीं है उसके लिए लगन, निष्ठा और उसके पीछे लगना पड़ता है तो धैर्य रखिये और करते जाइए।